बांग्लादेशः जमानत के बाद फिर चिन्मय कृष्ण दास की मुसीबत, चार अन्य मामलों में गिरफ्तारी के आदेश
बांग्लादेश की अदालत ने इस्कॉन पुजारी चिन्मय कृष्ण दास के खिलाफ चार नए मामलों में गिरफ्तारी का आदेश दिया है, जबकि पहले ही उन पर देशद्रोह और हत्या के आरोप हैं. नवंबर 2023 में उन्हें राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. छह महीने बाद मिली जमानत को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. अल्पसंख्यकों के समर्थक के रूप में उभरे चिन्मय की कई जमानत याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं, और उनकी कानूनी परेशानियां लगातार बढ़ रही हैं.

बांग्लादेश की एक अदालत ने इस्कॉन से जुड़े हिंदू पुजारी चिन्मय कृष्ण दास के खिलाफ चार नए मामलों में गिरफ्तारी का आदेश जारी किया है. यह आदेश चटगांव मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट एसएम अलाउद्दीन महमूद ने मंगलवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए हुई सुनवाई के दौरान दिया. इससे पहले सोमवार को भी उन्हीं के खिलाफ एक हत्या के मामले में गिरफ्तारी आदेश जारी किया गया था.
नवंबर 2023 में हुई थी पहली गिरफ्तारी
चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर 2023 को ढाका स्थित हजरत शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया था. उन्हें देशद्रोह से संबंधित मामले में हिरासत में लिया गया, जिसमें उन पर राष्ट्रीय ध्वज के अपमान का आरोप लगाया गया है. गिरफ्तारी के बाद उनकी ज़मानत याचिका अदालत द्वारा खारिज कर दी गई थी और उन्हें अगले दिन जेल भेज दिया गया.
देशद्रोह मामले में मिली थी अंतरिम जमानत
हाल ही में उन्हें देशद्रोह के मामले में छह महीने की लंबी हिरासत के बाद जमानत दी गई थी, लेकिन बांग्लादेश सरकार ने इस फैसले का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी. चिन्मय दास की रिहाई के खिलाफ सरकार का यह कदम दर्शाता है कि प्रशासन अभी भी उन्हें एक संवेदनशील मुद्दा मानता है.
अल्पसंख्यक समुदाय की आवाज बने चिन्मय
बांग्लादेश में राजनीतिक परिवर्तन और प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता से दूरी के बाद चिन्मय कृष्ण दास को अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदू समुदाय के एक मुखर प्रतिनिधि के रूप में देखा जाने लगा. वे खासकर इस्लामी कट्टरता और अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे, जिससे उनका कद काफी बढ़ गया था.
कई बार खारिज हुईं जमानत याचिकाएं
चिन्मय दास के वकीलों ने 26 नवंबर को उनकी पहली जमानत याचिका चटगांव की अदालत में दाखिल की थी, लेकिन अदालत ने उसे नामंज़ूर कर दिया. इसके बाद 2 जनवरी को एक अन्य याचिका फिर से खारिज हुई. इस तरह, उनकी रिहाई के प्रयास बार-बार विफल होते रहे हैं, जिससे साफ है कि न्यायिक प्रक्रिया अभी भी उनके खिलाफ सख्ती बरत रही है.
बढ़ती कानूनी जटिलताओं का संकेत
चार नए मामलों में गिरफ्तारी के आदेश और पहले से लंबित मुकदमों को देखते हुए चिन्मय दास की कानूनी मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं. यह घटनाक्रम न केवल बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति को उजागर करता है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और राजनीतिक असहमति को लेकर भी गंभीर सवाल उठाता है.


