9 महीने तक बच्चे को गर्भ में रखना क्यों जरूरी? जानें अर्ली और लेट डिलीवरी का बच्चे की सेहत पर कैसे पड़ता है असर
Pregnancy Tips: प्रेग्नेंसी के 9 महीने शिशु के संपूर्ण विकास के लिए बेहद जरूरी होते हैं. समय से पहले या ज्यादा देर से जन्म लेने वाले शिशुओं को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों 9 महीने तक गर्भ में रहना आवश्यक है, और अर्ली या लेट डिलीवरी से क्या खतरे हो सकते हैं?

Pregnancy Tips: गर्भावस्था का हर चरण शिशु के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है. पूरे 9 महीने तक गर्भ में रहना नवजात के संपूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बेहद आवश्यक माना जाता है. डॉक्टरों के अनुसार, यदि शिशु समय से पहले (अर्ली डिलीवरी) या ज्यादा देरी (लेट डिलीवरी) से जन्म लेता है, तो इससे उसकी सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
अर्ली डिलीवरी से जहां बच्चे को श्वसन संबंधी समस्याएं, कम वजन और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं, वहीं लेट डिलीवरी भी जोखिम भरी हो सकती है, जिससे प्लेसेंटा की कार्यक्षमता कम हो सकती है. ऐसे में गर्भधारण की अवधि का सही संतुलन बनाए रखना मां और बच्चे दोनों के लिए आवश्यक है.
गर्भावस्था के 9 महीने क्यों होते हैं जरूरी?
गर्भावस्था को आमतौर पर तीन तिमाहियों में बांटा जाता है, जिनमें हर तिमाही शिशु के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
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पहली तिमाही (0-3 महीने): इस दौरान भ्रूण का मस्तिष्क, हृदय और अंगों का विकास शुरू होता है.
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दूसरी तिमाही (4-6 महीने): शिशु की हड्डियां मजबूत होती हैं, मांसपेशियां बनती हैं और सुनने-समझने की क्षमता विकसित होती है.
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तीसरी तिमाही (7-9 महीने): इस समय बच्चे का वजन बढ़ता है, फेफड़े विकसित होते हैं और जन्म के लिए पूरी तैयारी होती है.
अगर शिशु को पूरे 9 महीने का समय नहीं मिलता, तो उसका विकास अधूरा रह सकता है, जिससे कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.
अर्ली डिलीवरी के नुकसान
समय से पहले जन्म (प्रीमैच्योर डिलीवरी) तब होता है जब शिशु 37वें सप्ताह से पहले जन्म लेता है. इसके कारण कई जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे:
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कम वजन: प्रीमैच्योर शिशु का वजन सामान्य से कम होता है, जिससे उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है.
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श्वसन संबंधी समस्याएं: फेफड़ों का पूर्ण विकास न होने से सांस लेने में दिक्कत हो सकती है.
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न्यूरोलॉजिकल समस्याएं: मस्तिष्क का विकास अधूरा रह सकता है, जिससे सीखने और समझने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
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संक्रमण का खतरा: कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
लेट डिलीवरी के खतरे
अगर डिलीवरी 40-42 सप्ताह से ज्यादा देर से होती है, तो इसे लेट डिलीवरी माना जाता है. इससे मां और बच्चे दोनों को खतरा हो सकता है:
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प्लेसेंटा की कार्यक्षमता कम होना: ज्यादा समय तक गर्भ में रहने से प्लेसेंटा ठीक से काम करना बंद कर सकता है, जिससे शिशु को ऑक्सीजन और पोषण मिलना बंद हो सकता है.
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अधिक वजन: अधिक समय तक गर्भ में रहने वाले शिशु का वजन बढ़ सकता है, जिससे नॉर्मल डिलीवरी में कठिनाई हो सकती है.
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एम्नियोटिक फ्लूइड की कमी: गर्भ में पानी कम होने से बच्चे की हलचल सीमित हो सकती है, जिससे जन्म के दौरान जटिलताएं बढ़ सकती हैं.
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मेकोनियम एस्पिरेशन सिंड्रोम: देर से जन्म लेने वाले शिशु में यह समस्या हो सकती है, जिससे उसे सांस लेने में कठिनाई होती है.
सही समय पर डिलीवरी क्यों जरूरी?
डॉक्टरों का कहना है कि "प्राकृतिक रूप से 9 महीने (40 सप्ताह) की गर्भावस्था सबसे आदर्श होती है, क्योंकि इससे शिशु का हर अंग पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है. अगर कोई जटिलता नहीं हो, तो डिलीवरी को प्राकृतिक समय तक पहुंचने देना चाहिए." हालांकि, कुछ परिस्थितियों में डॉक्टर समय से पहले या देर से डिलीवरी करवाने का फैसला कर सकते हैं, लेकिन यह तभी किया जाता है जब मां या बच्चे की जान को खतरा हो.
सही समय पर डिलीवरी के लिए क्या करें?
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नियमित प्रेग्नेंसी चेकअप कराएं: डॉक्टर से नियमित रूप से मिलें और सभी जांच करवाएं.
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संतुलित आहार लें: पोषक तत्वों से भरपूर आहार लें ताकि शिशु का संपूर्ण विकास हो सके.
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तनाव न लें: मानसिक तनाव से गर्भावस्था पर बुरा असर पड़ सकता है, जिससे समय से पहले डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है.
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नियमित व्यायाम करें: डॉक्टर की सलाह से हल्की एक्सरसाइज करें, जिससे डिलीवरी आसान हो सके.
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शरीर में पानी की कमी न होने दें: पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं ताकि गर्भ में एम्नियोटिक फ्लूइड बना रहे.
Disclaimer: ये आर्टिकल मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है, अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर्स की राय जरूर लें.


