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ठेकेदारी से राजनीति सियासत और अपराध की मिली-जुली विरासत...जानें कैसा रहा सुनील पांडेय का सफर

Bhojpur MLA Sunil Pandey : सुनील पांडे, बिहार की राजनीति के चर्चित बाहुबली नेता, शिक्षा और अपराध दोनों के प्रतीक रहे. रोहतास से पढ़ाई शुरू कर PHD तक पहुँचे, पर जीवन अपराध और विवादों से घिरा रहा. पिरो और तरारी से तीन बार विधायक बने, कई आपराधिक मामलों में आरोपी रहे लेकिन कई बार बरी भी हुए. अब राजनीति से संन्यास लेकर उन्होंने अपने बेटे विशाल प्रशांत को भाजपा से चुनावी मैदान में उतारा है.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

Bhojpur MLA Sunil Pandey : बिहार की राजनीति में जब भी अपराध और सत्ता के मेल की चर्चा होती है, तो सुनील पांडे का नाम अक्सर सामने आता है. हालांकि, वे केवल एक बाहुबली नहीं थे बल्कि एक ऐसे नेता थे जिनके पास पीएचडी जैसी उच्च शिक्षा की डिग्री भी थी. भोजपुर जिले से चार बार विधायक रहे पांडे का राजनीतिक सफर जितना प्रभावशाली रहा, उतना ही विवादों से भी घिरा रहा. वे उन विरलों में से एक हैं, जिनके जीवन में पढ़ाई और अपराध दोनों समानांतर रूप से चलते रहे.

रोहतास से पूरी की प्रारंभिक शिक्षा
आपको बता दें कि सुनील पांडे का जन्म रोहतास जिले में नरेंद्र पांडे के नाम से हुआ था. उनके पिता कामेश्वर पांडे, एक प्रभावशाली ठेकेदार थे, जिनकी पहचान स्थानीय स्तर पर मजबूत मानी जाती थी. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा रोहतास से पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए बेंगलुरु रवाना हुए, जहां उन्होंने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया. हालांकि, उन्होंने बीच में पढ़ाई छोड़ दी और वापस घर लौट आए. दिलचस्प यह रहा कि अपराध की दुनिया में कदम रखने के बावजूद उन्होंने शिक्षा नहीं छोड़ी. उन्होंने आरा स्थित एक विश्वविद्यालय से एमए किया और बाद में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. इतना ही नहीं, वे कानून की पढ़ाई भी कर चुके थे.

बाहुबली से विधायक तक का सफर

सुनील पांडे का नाम पहली बार तब सुर्खियों में आया जब उन पर अपने ही रूममेट शीलू मियां की हत्या का आरोप लगा. यही कुख्याति बाद में उनके राजनीतिक करियर की सीढ़ी बन गई. 2000 तक वह पुलिस की नजरों से बचते रहे और फरार जीवन जीते रहे. लेकिन इसी दौरान समता पार्टी ने उन्हें पिरो सीट से अपना उम्मीदवार बनाया और वे जीत गए. इसके बाद उन्होंने 2005 में जदयू के टिकट पर फिर जीत हासिल की. जब उसी वर्ष बिहार में दोबारा चुनाव हुए, तब भी उन्होंने अपनी सीट बरकरार रखी.

तरारी सीट से तीसरी बार विधानसभा पहुंचे
2008 में परिसीमन के चलते पिरो सीट समाप्त हो गई और उसकी जगह तरारी सीट बनी. 2010 में उन्होंने यहां से जीत दर्ज की और तीसरी बार विधानसभा पहुंचे. 2015 के चुनाव में उन्होंने खुद न लड़कर अपनी पत्नी गीता पांडे को लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन वह हार गईं. अपने राजनीतिक करियर में सुनील पांडे ने सात बार पार्टियां बदलीं समता पार्टी, जदयू और लोजपा के बीच वे लगातार घूमते रहे.

मुकदमों और आरोपों की लंबी फेहरिस्त
पांडे का जीवन लगातार जेल और अदालतों के बीच झूलता रहा. उन पर हत्या, फिरौती और अपहरण जैसे संगीन मामलों में कई मुकदमे दर्ज हुए. एक समय पर उन पर उत्तर प्रदेश के कुख्यात गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी की सुपारी देने का भी आरोप लगा था.

पांडे और ब्रह्मेश्वर मुखिया के बीच गहरी नजदीकी
वे रणवीर सेना से भी जुड़े रहे, जो जमींदार वर्ग की एक सशस्त्र मिलिशिया थी. माना जाता है कि पांडे और रणवीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया के बीच गहरी नजदीकी थी, लेकिन 1997 में पांडे के एक रिश्तेदार की हत्या के बाद यह संबंध टकराव में बदल गया. 2012 में जब मुखिया की हत्या हुई, तो पांडे का नाम एक बार फिर सामने आया, लेकिन पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में वे आरोपमुक्त हो गए.

उन्हें आरा सिविल कोर्ट बम ब्लास्ट जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में भी आरोपी बनाया गया, लेकिन सबूतों के अभाव में वे बरी होते रहे. एक बार उन्होंने पटना के एक फाइव स्टार होटल में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार को खुलेआम धमकी दी, जो राष्ट्रीय सुर्खियों में आया.

राजनीति में बेटे की एंट्री
अब जब सुनील पांडे ने राजनीति से संन्यास ले लिया है, तो उनकी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उनके बेटे विशाल प्रशांत के कंधों पर है. विशाल आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर तरारी सीट से चुनाव लड़ेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा पाते हैं या बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय लिखते हैं.

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16 October 2025, 04:25 PM IST

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