हमारा देश तब बदलेगा, जब हमारी शिक्षा बदलेगी और शिक्षा तब बदलेगी, जब हमारे नेताओं की सोच बदलेगी- मनीष सिसोदिया
मनीष सिसोदिया ने “दुनिया की शिक्षा व्यवस्था और भारत” नाम से वीडियो सीरीज शुरू की है, जिसमें जापान, सिंगापुर, चीन, कनाडा और फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली से भारत की तुलना की गई है. उन्होंने बताया कि शिक्षा के बल पर ये देश आगे बढ़े. सिसोदिया का संदेश है कि भारत तभी बदलेगा जब शिक्षा बदलेगी, और शिक्षा तभी बदलेगी जब नेताओं की सोच बदलेगी. इसलिए ज़रूरी है सही नेता चुनना.

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक नई और जागरूकता फैलाने वाली पहल की शुरुआत की है. उन्होंने “दुनिया की शिक्षा व्यवस्था और भारत” नाम से एक वीडियो सीरीज लॉन्च की है, जिसका उद्देश्य देश की जनता को यह समझाना है कि बच्चों को कैसी शिक्षा दी जानी चाहिए और इसके लिए किन नेताओं को चुनना ज़रूरी है. इस पहल के पीछे सिसोदिया का स्पष्ट संदेश है कि जब तक शिक्षा व्यवस्था नहीं बदलेगी, तब तक देश नहीं बदलेगा – और शिक्षा व्यवस्था तभी बदलेगी जब नेताओं की सोच बदलेगी.
पांच देशों से तुलना: भारत कहां खड़ा है?
जापान: जिम्मेदारी और आत्मनिर्भरता की शिक्षा
जापान का उदाहरण देते हुए सिसोदिया ने बताया कि वहां 1872 में यह तय कर दिया गया था कि हर बच्चे की शिक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होगी. यह वही काम भारत ने 2011 में शिक्षा का अधिकार कानून बनाकर किया. जापान में शिक्षा का मकसद केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिक बनाना है. वहां स्कूलों में बच्चे खुद क्लासरूम, टॉयलेट और कॉरिडोर साफ करते हैं. यह आदतें देशभक्ति और आत्मनिर्भरता को जन्म देती हैं. उनकी शिक्षा प्रणाली ने उन्हें परमाणु हमले जैसी भीषण आपदा से भी उबार लिया और टेक्नोलॉजी का नेतृत्व करने वाला देश बना दिया.
सिंगापुर: जीरो संसाधनों से शिक्षा के बल पर अमीरी
सिंगापुर की कहानी और भी प्रेरणादायक है. 1965 में आज़ादी के समय न तो उनके पास संसाधन थे, न जमीन, और न ही धन. लेकिन उनके पहले प्रधानमंत्री ली कुआन यू ने शिक्षा को ही एकमात्र रास्ता माना और उसे ही भविष्य की नींव बनाया. सिसोदिया ने बताया कि आज सिंगापुर में सफाई कर्मचारी से लेकर इंजीनियर तक हर किसी को समान गुणवत्ता की शिक्षा दी जाती है. यही वजह है कि शिक्षा के बल पर यह छोटा देश दुनिया के सबसे अमीर देशों में गिना जाता है.
चीन: मेहनत को बनाया शिक्षा का आधार
चीन की शिक्षा प्रणाली की खासियत है – मेहनत. वहां टैलेंट से ज़्यादा मेहनत को महत्व दिया जाता है. चीन के स्कूलों में रिपोर्ट कार्ड में अंक के साथ-साथ बच्चे की मेहनत का भी मूल्यांकन होता है. वहां यह नहीं पूछा जाता कि कितने अंक आए, बल्कि यह पूछा जाता है कि कितनी मेहनत की. माता-पिता को भी पढ़ाई में शामिल किया गया है – उन्हें रोज़ बच्चों की परफॉर्मेंस पर अपडेट मिलते हैं. यही कारण है कि चीन के युवा सिर्फ सरकारी नौकरी की ओर नहीं भागते, बल्कि ग्लोबल बाज़ार में नेतृत्व करते हैं.
कनाडा: विविधता को अपनाकर शिक्षा में लीडर बना देश
कनाडा में शिक्षा केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नेतृत्व, संवाद, रणनीति और सामाजिक जुड़ाव को भी सिखाती है. वहां के स्कूलों में 100 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं और हर धर्म, संस्कृति और नस्ल के बच्चे साथ पढ़ते हैं. कनाडा इस विविधता को बोझ नहीं, बल्कि अवसर मानता है. उनकी संसद तय करती है कि बच्चों को हर उम्र में कौन सी योग्यताएं आनी चाहिए. वहां लीडरशिप और कम्युनिकेशन जैसे विषय मुख्य पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं, जबकि भारत में इन्हें आज भी "एक्स्ट्रा करिकुलर" माना जाता है.
फिनलैंड: सबसे भरोसेमंद और समर्पित शिक्षा मॉडल
फिनलैंड को दशकों से दुनिया की सबसे बेहतरीन शिक्षा प्रणाली के रूप में देखा जाता है. इसका कारण केवल पाठ्यक्रम नहीं, बल्कि उनकी सोच और व्यवस्था है. वहां सात साल की उम्र से पहले बच्चों को पढ़ाई नहीं कराई जाती, बल्कि उन्हें सोचने, खेलने और समझने का अवसर दिया जाता है. फिनलैंड में स्कूल इंस्पेक्टर नहीं होते, बल्कि सरकार शिक्षकों की ट्रेनिंग पर भरोसा करती है. टीचर बनना वहां सबसे कठिन कामों में से एक है – इसके लिए पांच साल की कठोर ट्रेनिंग लेनी पड़ती है. यह उनकी शिक्षा में गुणवत्ता और गहराई की मिसाल है.
भारत का सवाल: क्या हम शिक्षा को प्राथमिकता देंगे?
मनीष सिसोदिया ने इन सभी उदाहरणों के ज़रिए एक बड़ा सवाल खड़ा किया – क्या भारत भी अब शिक्षा को राजनीति के केंद्र में लाएगा? क्या हम नेताओं की सोच बदलने की हिम्मत करेंगे? क्या हम ऐसे नेता चुनेंगे जो अपने बच्चों के लिए वही शिक्षा चाहें जो आम जनता के बच्चों को दी जाती है? उनका कहना है कि हमें किसी देश की नकल नहीं करनी, लेकिन हमें अपने हालात के मुताबिक शिक्षा की एक समर्पित, प्रभावशाली और न्यायसंगत प्रणाली बनानी होगी.
अगर सोच न बदले, तो नेता बदल दो
सीरीज के अंत में मनीष सिसोदिया का स्पष्ट संदेश था कि भारत का भविष्य उस शिक्षा पर निर्भर करता है जो हम आज अपने बच्चों को देते हैं. और यह शिक्षा तय होती है उस सोच से जो हमारे नेताओं की होती है. यदि सोच नहीं बदले, तो फिर नेता बदलने का समय आ गया है. देश को बदलने का एकमात्र रास्ता शिक्षा से होकर गुजरता है.


