सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स, दिव्यांगों पर टिप्पणी को लेकर उठे सवाल
समय रैना और चार अन्य सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर दिव्यांगों का उपहास उड़ाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. कोर्ट ने दो हफ्ते में जवाब मांगा और सोशल मीडिया पर स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने के लिए केंद्र से कहा. न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती.

भारत के लोकप्रिय डिजिटल शो इंडियाज गॉट लेटेंट के होस्ट समय रैना और चार अन्य सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होना पड़ा. इन पर आरोप है कि इन्होंने सोशल मीडिया के ज़रिए दिव्यांग व्यक्तियों का उपहास उड़ाया, खासतौर पर ऐसे लोग जो स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) और दृष्टिहीनता जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इन पांचों से औपचारिक जवाब मांगा है और दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि तय समय के भीतर जवाब नहीं आता, तो उन्हें आगे कोई अतिरिक्त समय नहीं मिलेगा.
व्यक्तिगत पेशी के निर्देश
समय रैना को अगली सुनवाई में भी व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा गया है. वहीं, एक अन्य प्रभावित व्यक्ति, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर सोनाली ठक्कर उर्फ सोनाली आदित्य देसाई को उनके स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए वर्चुअल माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति दी गई है.
यह मामला तब और अधिक गंभीर हो गया जब याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि इन इन्फ्लुएंसर्स ने अपनी लोकप्रियता का दुरुपयोग करते हुए दिव्यांगता जैसी संवेदनशील स्थितियों का मज़ाक उड़ाया, जिससे समाज में नकारात्मक संदेश गया.
कोर्ट का सख्त रुख
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह सोशल मीडिया के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार करे, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरों के अधिकारों के बीच संतुलन कायम रह सके.
भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कोर्ट से इस विषय पर दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए अधिक समय मांगा और कहा कि यह एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा है, जिस पर विस्तृत विचार-विमर्श ज़रूरी है.
न्यायालय ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की, "व्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि वह दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करे." उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया की आज़ादी को पूरी तरह स्वतंत्र नहीं छोड़ा जा सकता, और संवैधानिक मूल्यों के अनुसार इसका संचालन आवश्यक है. उन्होंने आगे कहा, “आज के समय में इंटरनेट पर ढेरों मुफ्त सलाह देने वाले मिलते हैं, पर ज़रूरी यह है कि दिशा-निर्देश ऐसे हों जो सभी पक्षों की राय लेकर तैयार किए जाएं. हम इस पर सार्वजनिक चर्चा के लिए भी तैयार हैं.”


